सिर ठंडा, पेट नरम और पैर गर्म के सिद्धांत को आयुर्वेद में स्वस्थ शरीर का परिचायक माना गया है। लेकिन अगर इनमें से कोई भी अंग गड़बड़ाता है तो शरीर धीरे रोगों से पीडि़त होने लगता है। इसलिए जरूरी है कि शरीर के ये अंग अपने सही तापमान पर रहें जिससे बीमारियां न सताएं।
सिर ठंडा नहीं तो यह होगा
यह जरूरी नहीं कि जब बुखार हो तभी सिर गर्म हो। गुस्सा आने, तनाव या चिड़चिड़ापन होने पर भी सिर गर्म हो सकता है। लगातार यदि सिर गर्म रहे तो सिरदर्द, तनाव, आंखों की बीमारियां, कान की दिक्कत, नींद कम आना, घबराहट और हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्या हो सकती हैं।
ये करें: उस समय सिर पर गीला कपड़ा रखें। शीतली व शीतकारी प्राणायाम और चंद्र अनुलोम-विलोम करें। नियमित व्यायाम करें क्योंकि शरीर में रक्त का संचार सामान्य रहने से दिमाग को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है और सिर ठंडा रहता है।
रोगों से बचाव तो नरम पेट
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार ज्यादातर रोगों की जड़ हमारा पेट होता है। अगर पेट में भारीपन, गैस, अपच और कब्ज होने पर पेट नरम रहने की बजाय कठोर, भारी रहने लगता है और अन्य बीमारियां परेशान करने लगती हैं।
ये करें: पेट पर ठंडा और गर्म सेंक करें। इसके लिए पहले दो मिनट गर्म और फिर एक मिनट ठंडा सेंक करें। इस प्रक्रिया को पांच बार करते हुए 15 मिनट तक करें। खाने में ज्यादा तला या भुना हुआ ना खाएं। भोजन को चबाकर खाएं व पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
पैरों को रखें गर्म
पैर के तलवे और पंजे हल्के गर्म रहने चाहिए। अगर पैरों के पंजे हल्के गर्म रहते हैं तो पांव में खून की नलियां चौड़ी होने लगती हैं। जिससे सिर व सीना हल्का व शिथिल पडऩे लगता है।
ये करें: पैरों को गुनगुने पानी में 10 मिनट तक रखें। इससे सिर भी ठंडा रहता है। गुनगुने पानी में कपड़े को भिगोकर तलवों पर उसका घर्षण पांच मिनट तक करें।
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