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Friday, September 28, 2018

अमरीकी स्पेस फोर्स अंतरिक्ष से ही दुश्मन को ताड़ लेगी

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब दुनिया की सबसे शक्तिशाली सैन्य ताकत स्पेस फोर्स तैयार करने में लगे हैं। मकसद अंतरिक्ष में अमरीका के दखल को बढ़ाना है। नीति के तहत सैटेलाइट की डिजाइनिंग और ऑपरेशन से जुड़ी रणनीति को और बेहतर करना है। हाल ही ट्रंप ने इसके लिए रक्षा विभाग और पेंटागन को फोर्स के गठन के लिए निर्देश दिया है। ट्रंप ने कहा कि स्पेस फोर्स वायु सेना से अलग होगी लेकिन इसका दर्जा उसके समकक्ष ही होगा। इसकी पूरी निगरानी जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ जनरल जोसेफ डनफोर्ड देखेंगे। ट्रंप ने इस नई सैन्य ताकत को लेकर कहा है कि अंतरिक्ष में अमरीका का दखल बड़ी बात नहीं है वहां पर हमारा राज होना चाहिए। मैं ये कभी नहीं देखना चाहूंगा की चीन और दूसरे देश हमसे आगे निकल जाएं। ट्रंप के बयान के बाद जॉइंट चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जोसेफ डनफोर्ड ने रक्षा सचिव जिम मैटिस के साथ बातचीत शुरू कर दी है जिससे इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जा सके।

अंतरिक्ष में स्पेस फोर्स के गठन के बाद सैन्य ताकत को और मजबूती मिलेगी। पेंटागन इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने की तैयारी में लग गया है। इसके लिए थल सेना, नौसेना, वायुसेना और मरीन फोर्स के उच्च अधिकारियों के साथ बैठक भी हो चुकी है। डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान के बाद उप राष्ट्रपति माइक पेंस ने इस योजना को पूरा करने के लिए 2020 की समय सीमा तय की है जो अमरीकी सेना की छठी सबसे ताकतवर शाखा होगी। स्पेस फोर्स अलग शाखा होगी जिसका नेतृत्व जनरल स्तर के अधिकारी के पास होगा। ये अफसर वायुसेना प्रमुख को रिपोर्ट करेंगे जैसे अभी मरीन कॉप्र्स के अधिकारी अमरीकी नौसेना के प्रमुख को रिपोर्ट करते हैं। बिना इनकी अनुमति के कुछ नहीं होगा।

स्पेस फोर्स ऐसे करेगी काम

अमरीकी स्पेस फोर्स सेना को मदद करने के साथ एयर फोर्स को अंतरिक्ष से निर्देश या सूचना देने का काम करेगी। स्पेस फोर्स का पूरा ध्यान अंतरिक्ष और साइबर स्पेस ऑपरेशन पर होगा। उपग्रहों को छोडऩे और उनके प्रबंधन की जिम्मेदारी होगी। इसके साथ ही आतंकी संगठनों की निगरानी करना है जिससे बैलेस्टिक मिसाइल से हमले की साजिश को नाकाम किया जा सके। नासा अभी तक अंतरिक्ष और विज्ञान से जुड़ी जानकारियां ही साझा कर रहा था अब स्पेस फोर्स से अंतरिक्ष से सैन्य कार्रवाई भी संभव हो सकेगी। योजना के मुताबिक स्पेस फोर्स कमांड में 36 हजार विशेषज्ञों की तैनाती होगी जो सेना से जुड़ी हर तकनीकी गतिविधि पर नजर रखेंगे।

अनुमान के मुताबिक अमरीका इसके लिए हर साल करीब 700 करोड़ रुपए की रकम खर्च करेगा। हालांकि 1967 में अमरीका ने अंतरिक्ष संधि के तहत हस्ताक्षर किया था जिसमें चंद्रमा और दूसरे अंतरिक्ष ग्रहों पर किसी तरह के हथियारों का परीक्षण और हथियारों को रखनेे का अधिकार नहीं था। चीन और रूस ने भी इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन इसपर रणनीति नहीं बनी। जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और स्पेस पॉलिसी एक्सपर्ट जॉन लॉग्सडन कहते हैं कि संधि का मकसद अंतरिक्ष में बड़ी कार्रवाई करने से किसी देश को रोकना था। स्पेस फोर्स के गठन को रोकने का कोई नियम नहीं था।

सैन्य ताकत में हम भी पीछे नहीं

दुनियाभर की सैन्य ताकत में भारत चौथे स्थान पर है। सैनिकों की संख्या करीब 4,207,250 है। जहाजी बेड़े में 2102 जहाज जबकि 676 लड़ाकू विमान हैं। 4,226 टैंक है। नौसेना के पास 295 जलपोत हैं। रक्षा बजट करीब 2,79,305 करोड़ रुपए का है। थलसेना के लिए 15, 4902 करोड़, वायुसेना के लिए 64,591 करोड़, नौसेना के लिए 40,420 करोड़ व डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन के लिए 17,861 करोड़ का बजट है। अमरीका पहले, रूस दूसरे, फ्रांस तीसरे और चीन पांचवे नंबर पर है।



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